राजकोषीय नीतिआमतौर पर बजट घाटे के साथ मुद्रा पूर्ति की तबदीलियां लाती है.
2.
कुल मिलाकर मुद्रा पूर्ति में वृद्धि की दर काफी धीमी हो गई. इसमेंवर्ष १९८४-८५ में १८.
3.
२० मुद्रा पूर्ति में वृद्धि की दर कम रहने और प्रभावी पूर्ति व्यवस्थाके परिणाम स्वरूप मुद्रा स्फीति की दर गिरी.
4.
इस प्रकार उत्पादन में हुई वृद्धि से मुद्रा पूर्ति में वृद्धिसे प्रेरित मांग पूरी हो जाती है और जो स्फीति पहले हुई थी उसका अंत होजाता हैं.
5.
इसलिए यह आवश्यक है कि वस्तुओं की कुल मांग और कुल पूर्ति के बीच संतुलनरखा जाए और मुद्रा पूर्ति की वृद्धि को शुद्ध घरेलू उत्पाद की वृद्धि केसाथ जोड़ा जाए.
6.
मुद्रा पूर्ति की वृद्धि दर निर्धारित करते समय विशेषसावधानी बरतने की आवश्यकता इसलिए है कि योजना में निवेश का स्वरूप ऐसाबनाया गया है कि उससे उन लोगों की आय में वृद्धि होगी जिनकी बचत करने कीक्षमता बहुत कम है.
7.
" सातवीं योजना के घाटा वित्त की मात्रा (जो कि कुल रिजर्व बैंक उदार) जोकि सरकार को दिया जाता है, निश्चित किया जाता है, उस स्तर पर माना जाताहै, ठीक मात्रा में जो कि फालतू मुद्रा पूर्ति की जरूरत होती है, मुद्राकी मांग की जरूरी वृद्धि को पूरी करने के लिए.